Sunday, October 17, 2010

हेडली को अमेरिका ने क्यों नहीं रोका?

मुम्बई पर हमले की साजिश रचने वाले पाकिस्तानी दहशतगर्द डेविड कोलमैन हेडली और अमेरिका के बीच की सांठगांठ की बात फिर सामने आई है। हेडली की दो बीवियों ने यह खुलासा किया है कि हेडली के बारे में अमेरिकी अधिकारियों को आगह किया गया था लेकिन इसकी किसी ने सुध नहीं ली।
ऐसे में इस बात को स्पष्ट तौर पर कहा जा सकता है कि हेडली अमेरिका के लिए काम करता था। हेडली की दूसरी बीवी फाइजा औतल्हा की ओर से नया खुलासा किया गया है। फाइजा मोरक्को मूल की नागरिक है। इससे पहले हेडली की एक अमेरिकी पत्नी ने भी दावा किया था कि उसका पति पाकिस्तान में सक्रिय आतंकवादी संगठन लश्कर-ए-तैयबा का सदस्य था और पाकिस्तान की एक प्रमुख खुफिया एजेंसी का उसे संरक्षण प्राप्त था। हेडली ने तीन शादियां कर रखी हैं।
दोनों पत्नियों की ओर से चेतवानी मिलने के बाद भी अमेरिकी अधिकारियों ने कोई कदम नहीं उठाया। इसका नतीजा रहा कि पाकिस्तानी मूल का आतंकवादी हेडली वर्ष 2002 से 2009 के बीच शिकागो से पाकिस्तान के बीच अपने नेटवर्क को मजबूत करता रहा और मुम्बई को दहलाने की साजिश रचता रहा।
फाइजा ने यह दावा किया है कि हेडली हर समय अलग-अलग पहचान बताता था। पाकिस्तान में रहने पर वह खुद को एक पक्का मुसलमान बताता था और सभी से बतौर दाऊद मिलता था। इसके बाद जब वह भारत जाता था तो वहां खुद को अमेरिकी नागरिक बताकर डेविड हेडली के रूप में लोगों से मिलता था।
फाइजा ने कहा, ‘‘मैंने अमेरिकी अधिकारियों को बताया था कि वह (हेडली) आतंकवादी है या फिर आप लोगों के लिए काम कर रहा है। परंतु उन्होंने अप्रत्यक्ष रूप से मुझे चले जाने के लिए कहा।’’
ऐसे में यह बड़ा सवाल है कि राष्ट्रपति ओबामा की भारत यात्रा से पहले यह नया खुलासा क्या रंग लाएगा? क्या भारत ओबामा से यह पूछेगा कि अमेरिका ने हेडली के बारे में भारत को वक्त रहते क्यों नहीं सूचित किया।? इसके साथ यह भी सवाल पूछा जाना चाहिए हेडली अमेरिकी सरकार का एजेंट था या नहीं?

Tuesday, October 5, 2010

मुशर्रफ ने उगला कड़वा सच

आखिरकार पाकिस्तान के पूर्व राष्ट्रपति परवेज मुशर्रफ ने स्वीकार कर लिया  कि उनका देश भारत के खिलाफ लड़ने के लिए आतंकवादी समूहों को प्रशिक्षित करता था। उनकी सरकार भारत के साथ कश्मीर मुद्दे पर बातचीत चाहती थी इसलिए वह सब कुछ जानते हुए भी इस ओर से आंखें मूंदे रहती थी। पाकिस्तान की सरकार ने उनके खुलासे पर ऐतराज़ जताया है.

जर्मनी की एक पत्रिका को दिए एक साक्षात्कार में मुशर्रफ ने कहा है कि वास्तव में कश्मीर में भारत से लड़ने के लिए आतंकवादी समूह तैयार किए जाते थे। उन्होंने कहा, "सरकार इस ओर से आंखें मूंदे रहती थी क्योंकि वह चाहती थी कि भारत कश्मीर पर चर्चा करे।"
मुशर्रफ ने कहा, "पश्चिम की ओर से कश्मीर मुद्दे की अनदेखी की जा रही थी, जो पाकिस्तान के लिए मुख्य मुद्दा था। हमें उम्मीद थी कि पश्चिमी देश खासतौर पर अमेरिका और जर्मनी जैसे महत्वपूर्ण देश कश्मीर मुद्दे के समाधान में मदद करेंगे। क्या जर्मनी ने ऐसा किया।"
पाकिस्तानी सेना के पूर्व प्रमुख मुशर्रफ ने ही अक्टूबर 1999 में तत्कालीन प्रधानमंत्री नवाज शरीफ सरकार का तख्तापलट दिया था। उन्होंने कहा कि पाकिस्तान में जब भी अशांति होती है तो हर कोई सेना को इसके लिए जिम्मेदार मानता है जबकि सैन्य शासन में अशांति दूर हो गई थी।
उन्होंने कहा कि पाकिस्तान की आर्थिक स्थिति कमजोर हो रही है जबकि अन्य क्षेत्रों में भी यही हाल है। कानून-व्यवस्था की धज्जियां उड़ाई जा रही हैं, आतंकवाद बढ़ गया और इस सब के बीच राजनीतिक उथल-पुथल की स्थिति है।

Wednesday, September 29, 2010

पाकिस्तान ने फिर छेड़ा कश्मीर राग

पाकिस्तान ने एक बार फिर कश्मीर को विश्व स्तर का मसला बनाने की कोशिश की है. उसकी इस कोशिश का मकसद अपने यहाँ बढ़ रही अराजकता से दुनिया का ध्यान हटाना है.
पाकिस्तान के विदेश मंत्री शाह महमूद कुरैशी ने संयुक्त राष्ट्र महासभा में मंगलवार को कश्मीर में जनमत संग्रह कि बात कही. उनहोंने मंगलवार को महासभा को संबोधित करते हुए कहा, "कश्मीरियों के आकांक्षाओं को ध्यान में रखते हुए कश्मीर मसले का हल संयुक्त राष्ट्र प्रस्तावों के मुताबिक होना चाहिए। इससे दक्षिण एशिया में शांति और स्थिरता के लिए बेहतर माहौल बनेगा।"

कुरैशी ने कहा, "जम्मू एवं कश्मीर विवाद स्वतंत्र और निष्पक्ष जनमत संग्रह के तहत कश्मीरी लोगों के आत्म निर्णय लेने के अधिकार से जुड़ा है। यह संयुक्त राष्ट्र के तहत होना चाहिए।"

अब सवाल यह है कि पकिस्तान को कश्मीर कि याद क्यूँ आ गयी ? इसका जवाब यही है अपनी बदहाली छुपाने कि या एक कोशिश भर है. भारत सरकार ने भी यही बात कही है.

Monday, September 20, 2010

विश्वसनीय नहीं रहा आईएईए : ईरान

ईरान ने अंतर्राष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी (आईएईए) कि विश्वसनीयता इज लोकी खड़े कियें हैं.

आईएईए के सदस्य देशों की वार्षिक बैठक के दौरान ईरान के परमाणु प्रमुख अली अकबर सालेही ने कहा, "ऐसा लगता है कि एजेंसी एक नैतिक, आधिकारिक और विश्वसनीयता के संकट से जूझ रहा है।"

सालेही ने आईएईए की हाल की एक रिपोर्ट के बारे में शिकायत की, जिसमें एजेंसी द्वारा की जा रही ईरान के परमाणु कार्यक्रम की जांच में उसके द्वारा सहयोग न करने के लिए आलोचना की गई थी। उन्होने ने आरोप लगाया कि आईएईए कुछ खास देशों के राजनीतिक दबाव में है। यह संकेत अमेरिका और उसके पश्चिमी सहयोगियों की ओर था।

Saturday, September 18, 2010

कुरैशी से मिल सकते हैं कृष्णा

पिछले दिनों द्विपक्षीय वार्ता कि नाकामी के बाद  विदेश मंत्री एस.एम. कृष्ण अपने पाकिस्तानी समकक्ष शाह महमूद कुरैशी से मुलाकात कर सकते हैं. दोनों  इस महीने होने वाली संयुक्त राष्ट्र की आम सभा की बैठक के लिए न्यूयार्क पहुँच रहे हैं.
कृष्णा 10 दिवसीय दौरे पर शनिवार को न्यूयार्क रवाना हो रहे हैं। वह आम सभा की कई सारी उच्चस्तरीय बैठकों में भारत का प्रतिनिधित्व करेंगे तथा कई अन्य आयोजनों में भी हिस्सा लेंगे। विदेश सचिव निरूपमा राव फिलहाल वाशिंगटन में हैं। वह अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा के नवंबर में प्रस्तावित भारत दौरे से संबंधित एजेंडे को मूर्तरूप देने में जुटी हैं।

 इस बात की संभावना है कि दोनों विदेश मंत्री संयुक्त राष्ट्र महासचिव बाण की मून द्वारा दिए जाने वाले रात्रिभोज के दौरान और बाद में 28 सितंबर को सार्क  के विदेश मंत्रियों की बैठक के दौरान मिल सकते हैं। इसके पहले दोनों विदेश मंत्रियों के बीच 15 जुलाई को हुई वार्ता विफल हो चुकी है।

Tuesday, August 31, 2010

इराक में हमारा अभियान पूरा: ओबामा

अमेरिका के राष्ट्रपति बराक ओबामा ने इस बात की घोषणा कर दी है कि इराक में अमेरिकी अभियान अब खत्म हो गया है।

ओबामा ने देश के नाम अपने संबोधन में कहा ‘‘इस अहम पड़ाव पर सभी अमेरिका के लोगों  को याद रखना चाहिए कि अगर हम आत्मविश्वास और प्रतिबद्धता से आगे बढ़ते हैं, तो हमारा भविष्य हम खुद बना सकते हैं। इससे पूरी दुनिया को यह संदेश पहुंचेगा कि अमेरिका अपने नेतृत्व को मजबूत और कायम रखना चाहता है।’’

अपने कार्यालय से सीधे प्रसारित एक संदेश में उन्होंने इस बात की घोषणा की कि इराक में अभियान अब खत्म हो चुका है। उन्होंने कहा ‘‘ऑपरेशन इराकी फ्रीडम अब खत्म हो चुका है और अब इराकी लोगों को उनके देश की सुरक्षा की जिम्मेदारी खुद निभानी है।’’

Monday, August 16, 2010

सुरक्षा परिषद में भारत का दावा मजबूत

संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की वर्ष 2010-11 की अस्थाई सदस्यता के लिए भारत की दावेदारी मजबूत मानी  जा रही है. खुद भारत को भी भरोसा है कि अक्टूबर में होने वाले चुनाव में उसे आम महासभा में उसे कम से कम 150 वोट मिलेगा.
संयुक्त राष्ट्र की आम महासभा अक्टूबर में सुरक्षा परिषद की अस्थाई सदस्यता के लिए देशों का चयन करेगी। यदि सब कुछ ठीक रहा तो भारत एक जनवरी 2011 से दो वर्ष के कार्यकाल के लिए सुरक्षा परिषद का अस्थाई सदस्य बन जाएगा।

सुरक्षा परिषद की अस्थाई सदस्यता की दौड़ से इस वर्ष जनवरी में कजाकिस्तान के हटने के बाद से भारत ने दुनिया की सभी राजधानियों में राजनयिक प्रयास तेज कर दिए। अस्थाई सदस्यता के लिए आम महासभा में आवश्यक दो-तिहाई बहुमत को हासिल करने के लिए एशियाई और अफ्रीकी देशों का समर्थन जुटाने पर मुख्य रूप से जोर दिया जा रहा है.
अंतर्राष्ट्रीय समर्थन जुटाने की योजना में शामिल एक वरिष्ठ अधिकारी ने समाचार एजेंसी आईएएनएस को बताया कि अब एशियाई देशों के समर्थन के साथ भारत ने करीब 130 देशों का समर्थन हासिल कर लिया है जो आवश्यक 128 वोटों से अधिक है.

इसके बावजूद दुनिया भर से मिल रहे समर्थन से उत्साहित भारत ने अब कम से कम 150 सदस्यों का समर्थन जुटाने का लक्ष्य रखा है। आम महासभा की बैठक में हिस्सा लेने के लिए न्यूयार्क जा रहे कृष्णा उससे इतर सुरक्षा परिषद की स्थाई सदस्यता के दावेदार देशों जापान, ब्राजील और जर्मनी के विदेश मंत्रियों के साथ बैठक करेंगे।

Tuesday, August 10, 2010

'भारत और चीन के बीच सम्बन्ध इस सदी की बड़ी घटना'

विदेश सचिव निरुपमा राव का कहना है कि भारत और चीन के बीच सम्बन्ध इस सदी की बड़ी घटना है.
समाचार चैनल सीएनएन-आईबीएन के कार्यक्रम 'डेविल्स एडवोकेट' में करन थापर को दिए साक्षात्कार में राव ने कहा कि समझदारीपूर्ण वार्ता दोनों देशों को अपने मुद्दों को सामने रखने में मददगार होगी। इससे इन मुद्दों पर जवाबदेही और समझदारी बढ़ेगी।
उन्होंने कहा कि भारत और चीन के संबंध 21वीं सदी की बड़ी घटना होंगे। ये संबंध संवाद पर आधारित होंगे। हमारा इरादा इसे बुद्धिमानी और भरोसे से चलाने का है। इससे हम अपने हितों को हमेशा के लिए सुरक्षित कर रहे हैं.
भारत और चीन के बीच वर्ष 1962 में युद्ध हो चुका है। इसके बावजूद दोनों देशों के बीच व्यापार बढ़कर इस वर्ष के अंत तक 60 अरब डॉलर होने की उम्मीद है।

Sunday, August 8, 2010

कैमरन के ‘कूटनीतिक वार’ का मतलब

हाल ही में भारत दौरे पर आए ब्रिटिश प्रधानमंत्री डेविड कैमरन उस सच्चाई को बोल गए जिससे पूरी दुनिया वाकिफ है लेकिन कोई इस तरह सरेआम कहने की हिमाकत नहीं करता। अब भारत से बेहतर इसे कौन जानता होगा जो वर्षों से प्रायोजित आतंकवाद की मार झेल रहा है।

बेंगलुरू में कैमरन ने पाकिस्तान को दो टूक शब्दो में कह दिया कि वह आतंकवाद का निर्यात बंद करे। इससे बड़ी बात कि वह अपने इस बयान पर अडिग रहे। यह पहला मौका था जब किसी राष्टाध्यक्ष ने पाकिस्तान को झन्नाटेदार तमाचा जड़ा और फिर इस पर जरा अफसोस नहीं किया। पाकिस्तान में इस तमाचे की गूंज साफ तौर पर सूनी गई।

सवाल यह है कि आखिर कैमरन ने इस सच्चाई को क्यों दहाड़ने की अंदाज में बयां किया। क्या इसे मान लिया जाए कि अब इंग्लैंड की नीति साफ हो चुकी है? इन सवालों के बीच सच यह है कि इंग्लैंड अपनी विदेश नीति में बड़ा बदलाव ला रहा है। उसे इस बात का आभास है कि एशिया और अंतर्राष्टÑीय मंच पर भी भारत के सुर में सुर मिलाना उसके लिए कारगर हो सकता है। क्योंकि भारत के साथ उसके व्यापक हित जुड़े हुए हैं।


कैमरन का बयान भारत के बढ़ते कूटनीतिक रसूख का भी प्रमाण है। भारत हमेशा से यह कहता रहा है कि वह प्रायोजित आतंकवाद का शिकार है। परंतु ज्यादातर देश उस पर कुछ बोलने से परहेज करते रहे हैं। परंतु ब्रिटेन के बदले निजाम ने अपनी स्पष्ट राय जाहिर कर दी है। सवाल यह है कि अमेरिका भी इस कड़वी सच्चाई को सरेआम बयां करेगा?

Saturday, August 7, 2010

कोलंबिया के राष्ट्रपति बने जुआन मैनुअल सैंतोस

कोलंबिया में जुआन मैनुअल सैंतोस नए राष्ट्रपति बन गए हैं. उन्होंने अल्वारो उरिबे की जगह ली है। उनके पदभार ग्रहण करने के समारोह में लगभग 5,000 मेहमानों ने शिरकत की। इसमें ब्राजील के राष्ट्रपति लूला डीसिल्वा सहित कई गणमान्य लोग भी उपस्थित थे।

सैंतोस पेशे से एक पत्रकार और अर्थशास्त्री हैं। वह कोलंबिया के सबसे अमीर परिवारों में एक के सदस्य हैं। 59 साल के सैंतोस  वाम विद्रोहियों के प्रति कड़े तेवर रखने के लिए जाने जाते हैं।

सैंतोस आर्थिक सुधार को भी महत्व देना चाहते हैं. उनके सामने सबसे बड़ी चुनौती वाम विद्रोहियों से निपटने की  है. वह कोलंबिया में कई अहम् पदों पर रह चके हैं.

Thursday, August 5, 2010

पिल्लै पर कुरैशी का बयान 'हास्यास्पद' था : कृष्णा

विदेश मंत्री एस.एम. कृष्णा ने कहा है कि उनकी पाकिस्तान यात्रा के दौरान पाकिस्तानी विदेश मंत्री शाह महमूद कुरैशी द्वारा केंद्रीय गृह सचिव जी. के. पिल्लै की तुलना मुबंई आतंकी हमलों के मास्टरमाइंड हाफिज सईद से करना 'हास्यास्पद' था.
राज्यसभा में प्रश्नकाल के दौरान गुरुवार को भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) नेता वेंकैया नायडू के एक सवाल के जवाब में कृष्णा ने कहा, "सईद से भारतीय गृह सचिव की तुलना करना हास्यास्पद था। एक आतंकवादी से पिल्लै की तुलना नहीं की जा सकती।"
उन्होंने कहा, "हमारे गृह सचिव ने आईएसआई (पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी) के संदर्भ में जो बयान दिया था, वह आतंकवादी डेविड कोलमैन हेडली से पूछताछ से मिली जानकारी से संबंधित था। हमारी और एफबीआई की पूछताछ में जो बाते सामने आईं है, गृह सचिव उनको संज्ञान में लेकर ही बयान दिया था।"
मुंबई हमले के तार आईएसआई से जुड़े होने के सवाल पर विदेश मंत्री ने कहा, "पाकिस्तान में कई जेहादी संगठन हैं जो भारत के खिलाफ नफरत फैला रहे हैं। वे हमेश भारत पर हमले की साजिश रचते हैं। इन संगठनों और आईएसआई को लेकर हमने अपनी चिंता से पाकिस्तान सरकार को अवगत करा दिया है।"

आईएएनएस

Wednesday, August 4, 2010

ए.क्यू. खान के नेटवर्क के प्रति अमेरिका अब भी चिंतित

पाकिस्तान के अब्दुल कदीर खान के परमाणु तस्कर तंत्र के फिर सक्रिय होने की आशंका से अमेरिका चिंतित है जबकि पाकिस्तान का दावा है कि कुख्यात वैज्ञानिक का खेल खत्म हो चुका है।
समाचार पत्र 'वाशिंगटन टाइम्स' में छपे एक लेख के बारे में पूछे जाने पर विदेश विभाग के प्रवक्ता फिलिप जे.क्राउले ने मंगलवार को संवाददाताओं से कहा, "निश्चय ही ए.क्यू.खान या उसका तंत्र हाल के दशक में परमाणु प्रसार के लिए सर्वाधिक जिम्मेदार रहा है। पाकिस्तान और अन्य देशों के साथ हम उसके तंत्र को समाप्त करने के लिए काम कर रहे हैं। पाकिस्तान सरकार के अनुसार ए.क्यू.खान का खेल खत्म हो चुका है, फिर भी हम तंत्र पर कड़ी नजर रखे हुए हैं।"
क्राउले ने कहा कि यह दुनिया में परमाणु प्रसार रोकने के अमेरिका के प्रयास का हिस्सा है। इसलिए यह चिंता का एक विषय है।
अखबार ने पिछले हफ्ते दावा किया था कि ए.क्यू.खान के तंत्र के वैज्ञानिकों और इंजीनियरों को विभिन्न सरकारें लुभाने का प्रयास कर रही हैं।
इस घटना के बाद परमाणु प्रसार तंत्र के फिर सक्रिय होने की आशंका से अमेरिकी खुफिया एजेंसियों की चिंता बढ़ गई है।


IANS

हिजबुल्ला ने इजरायल को धमकाया


लेबनान के संगठन हिजबुल्ला ने पिछले दिनों लेबनानी सेना और इजरायली सैनिकों के बीच हुई गोलीबारी के मद्देनजर इजरायल के खिलाफ प्रतिक्रिया की धमकी दी है।
समाचार एजेंसी डीपीए के अनुसार दोनों देशों की सीमा पर हुई गोलीबारी में लेबनान के दो सैनिक, एक इजरायली सैनिक और एक पत्रकार की मौत हो गई थी।
इस घटना पर हिजबुल्ला के प्रमुख सैय्यद हसन नसरल्लाह ने मंगलवार को कहा कि हमारी सेना ने अपने दुश्मन इजरायल के खिलाफ वीरता का परिचय दिया। इस बार हमने कुछ नहीं कहा लेकिन फिर ऐसा हुआ तो हम शांत नहीं बैठेंगे.

Tuesday, August 3, 2010

इजरायली मनमानी पर खामोशी क्यों?

गाजा में इजरायल के आतंक पर पूरी दुनिया में एक अजीब की खामोशी है। इस खामोशी में दहशत का भाव भी है और इसमें कूटनीतिक मजबूरियां भी हैं। परंतु इस खामोशी का मंजर इतना व्यापक होगा, इसकी कल्पना इस सदी में तो हरगिस नहीं की जा सकती। उन मुल्कों के ओठ कुछ ज्यादा ही सिले नजर आ रहे हैं जो हमेशा दहशतगर्दी के खात्मे और इंसानियत का हिमायती होने का दम भरते हैं। क्या इन मुल्कों को लाखों फिलीस्तीनियों से कोई हमदर्दी नहीं है? इससे भी बड़ा सवाल यह कि क्या इन मुल्कों ने इजरायल की आंतकी हरकतों के सामने घुटने टेक दिए हैं?
इन सवालों के अपने मर्म हैं। ये इसलिए भी लाजमी लगते हैं क्योंकि इस बार इजरायली हिंसा की जद में सिर्फ फिलीस्तीनी नहीं है बल्कि उन मुल्कों के लोग भी रहे जो इजरायल के खासमखास माने जाते हैं। उनका इस यहूदी मुल्क से न सिर्फ आर्थिक और राजयिक ताल्लुक है बल्कि सैन्य संबंध भी है। 31 मई को इजरायल ने जिस हिंसक वारदात को अंजाम दिया, उसमें फिलीस्तीनी नागरिक नहीं बल्कि दूसरे मुल्कों के लोग मारे गए। इजरायली हमले में मारे गए सभी नौ लोगों में ज्यादातर तुर्की के नागरिक थे। यह वहीं मुस्लिम बहुल देश है जो इजरायल से अच्छे संबंध होने का दावा करता रहा है। शायद अब वह ये दावा करने से पहले एक बार जरुर सोचेगा।
इजरायल की मंशा पर गौर करने से पहले उसकी 31 मई की आतंकी हरकत की चर्चा बेहद जरुरी है। दरअसल उक्त तिथि को छह जहाजों का एक अंतर्राश्टीय सहायता दल मदद सामाग्री के साथ बदहाली से तंग गाजा की ओर बढ रहा था और उसी दौरान इजरायली रक्षा बल के जवानों ने अंधधुंध गोलीबारी आरंभ कर दी। इस हमला के पीछे का मकसद सहायता सामग्री को गाजा में पहुंचने से रोकना था। इसय हमले का नतीजा यह हुआ नौ सहायताकर्मी मारे गए औ कई घायल हो गए। इस बर्बर कार्रवाई पर इजरायल ने तर्क दिया कि उसने हमास समर्थकों को निशाना बनाया था। उसने यह भी कहा कि वह किसी भी सहायता दल को गाजा में दाखिल नहीं होने देगा।
इजरायल ने अपनी इस आतंकी हरकत की जद में पहले हमास को रखा और फिर बाद अलकायदा की माला भी जपने लगा। उसने कहा कि जहाजी बेडे़ पर हमास के अलावा आतंकवादी संगठन अलकायदा के कुछ सदस्य भी सवार थे और इसीलिए उसकी ओर से गोलीबारी की गई। इजरायल के इन दावों के बीच हकीकत कुछ और रही। जहाजी बेडे़ पर हमास या अलकायदा के सदस्य नहीं बल्कि सहायताकर्मी और मानवाधिकार कार्यकर्ता थे। उनका गाजा पहुंचने का मकसद लाखों लोगों तक राहत सामग्री पहुंचाना था। वे इजरायली अतिक्रमण पर विरोध भी जताना चाहते थे। इजरायल इस हकीकत को झुठलाने की लाख कोशिश करे लेकिन सच यही है कि उसने नौ बेकसूर विदेशी नागरिकों की निर्मम हत्या कर दी।
इस यहूदी मुल्क ऐसी कारगुजारी कोई नई बात नहीं है। मध्य एशिया का यह देश इंसानी पहलुओं का इतनी निर्दयता से दमन भी करता है, इसकी मिसाल इस बार देखने को मिली है। खुद को एक खुली जम्हूरियत बताने वाले इजरायल ने प्रदर्शनकारियों पर भी जमकर अत्याचार किया। उसने सैकड़ो विदेशी नागरिकों को जबरन अपने यहां से बाहर खदेड़ दिया। उसने कुछ शवों की शिनाख्त किए बगैर ही तुर्की भेज दिए। उसकी हरकतों के आगे मानवाधिकार कार्यकर्ता बेबस और लाचार नजर आए। वैसे उसके सामने लाचार तो पुरी दुनिया नजर आ रही है।
इजरायल की इस मनमाना हरकत पर पूरी दुनिया में प्रतिक्रिया हुई लेकिन बहुत सधे अंदाज में। दबी जुमान में। संयुक्त राश्ट संघ ने कहा कि इजरायल को इस कार्रवाई से परहेज करना चाहिए था। दुनिया की इस सबसे बड़ी संस्था ने गाजा की नाकेबंदी खत्म करने की भी बात कही। लेकिन इसका भी अंदाज गुजारिश करने वाला था। इसका नतीजा यह रहा कि इजरायल ने इस अपील को तत्काल खारिज कर दिया।
सिर्फ संयुक्त राश्ट ही नहीं, इजरायल ने इस बार अपने बड़े भाई अमेरिका की अपील को भी ठेंगा दिखा दिया। वैसे अमेरिका ने भी बेहद ही सहज अंदाज में बयान दिया। लगा मानो इजरायल ने गोलीबारी नहीं कोई हल्की नादानी की हो। अतीत में हर बार इजरायल की हरकतों पर पर्दा डालने वाला अमेरिका इस बार जरुर कुछ मुखर हुआ लेकिन उसकी यह मुखरता नाकाफी रही। इजरायल ने विश्व समुदाय की हर अपील को ठुकरा दिया। ऐसा लगा कि मानो अब उससे बड़ी कोई ताकत नहीं है।
इजरायल की मनमानी यही नहीं थमी। जब इस दुखद घटना की अंतर्राश्टीय स्तर पर जांच कराने की मांग उठी तो इसे भी उसने बडी बेशर्मी से खारिज कर दिया। उसका कुतर्क देखिए कि इजरायली सरकार के एक नुमाइंदे ने कहा कि उनका मुल्क एक जम्हूरियत है जहां इस घटना की जांच की जा सकती है। इस नुमाइंदे ने सरेआम कहा कि उनका देश इस मसले पर माफी कभी नहीं मांगेगा।
फिलीस्तीन के इस अटूट हिस्से गाजा पर इजरायल ने बीते तीन सालों से आर्थिक नाकेबंदी कर रखी है। उसका कहना है कि इससे हमास को मिलने वाली मदद पर अंकुश लगेगा। परंतु उसके पास इसका कोई जवाब नहीं कि इइन सबके बीच लाखों मासूम फिलीस्तीनियों का क्या होगा। आज इस नाकेबंदी का असर यह है कि गाजा के लोग बुनियादी स्तर पर कई चुनौतियों का सामना कर रहे हैं जो इंसानियत को शर्मिंदा करने वाली है। परंतु इजरायल कुछ इस कदर बेशर्मी अख्तियार किए हुए है कि उसे लाखों इंसानी रुह की तनिक भी सुध नहीं है।
सवाल यही है कि गाजा पटटी में घुसपैठ करने वाला इजरायल क्यों तनकर खड़ा है? इजरायल का मनमाना रुख कोई नई बात नहीं है। साल 2006 में चुनाव के बाद फिलीस्तीन की जनता ने जब हमास का समर्थन किया तो इजरायल और उसके मित्र देशों को यह हजम नहीं हुआ। फिलीस्तीन प्राधिकरण पर तमाम आर्थिक पाबंदिया लगा दी गईं। इसके बाद ही हमास को सबक सिखाने के नाम पर इजरायल ने गाजा पर हमला भी बोला। बाद में उसने वैश्विक दाबव और वक्त की नजाकत को भांपते हुए उसने अपनी सेना वापस बुलाई। परंतु इस दौरान सैकडो बेकसूर लोग मौत की नींद सो गए और हजारों सड़क पर आए गए। उसके बाद से उसकी ये नाकेबंदी आज भी जारी है।
वैसे यह दुनिया का पहला ऐसा मामला होगा जहां इस सदी में कोई देश दंबगई का परिचय देते हुए किसी दूसरे की सीमा की चौतरफा घेराबंदी कर दी है। परंतु पूरी दुनिया खामोश दिखाई देती है। परमाणु कार्यक्रम के मसले पर ईरान और उत्तर कोरिया को कोसने वाले देश इस मामले पर ढुलमुल दिखाई दिए। कई समाजसेवी और मानवाधिकार संगठनों ने इस पर आवाज उठाने की कोशिश की तो उन्हें इजरायल ने बर्बर ढंग से कुचलने का प्रयास किया। उसके इस तरह के हिंसक प्रयास में कई लोग मारे गए और बहुत से लोग घायल हुए।