Saturday, August 7, 2010

कोलंबिया के राष्ट्रपति बने जुआन मैनुअल सैंतोस

कोलंबिया में जुआन मैनुअल सैंतोस नए राष्ट्रपति बन गए हैं. उन्होंने अल्वारो उरिबे की जगह ली है। उनके पदभार ग्रहण करने के समारोह में लगभग 5,000 मेहमानों ने शिरकत की। इसमें ब्राजील के राष्ट्रपति लूला डीसिल्वा सहित कई गणमान्य लोग भी उपस्थित थे।

सैंतोस पेशे से एक पत्रकार और अर्थशास्त्री हैं। वह कोलंबिया के सबसे अमीर परिवारों में एक के सदस्य हैं। 59 साल के सैंतोस  वाम विद्रोहियों के प्रति कड़े तेवर रखने के लिए जाने जाते हैं।

सैंतोस आर्थिक सुधार को भी महत्व देना चाहते हैं. उनके सामने सबसे बड़ी चुनौती वाम विद्रोहियों से निपटने की  है. वह कोलंबिया में कई अहम् पदों पर रह चके हैं.

Thursday, August 5, 2010

पिल्लै पर कुरैशी का बयान 'हास्यास्पद' था : कृष्णा

विदेश मंत्री एस.एम. कृष्णा ने कहा है कि उनकी पाकिस्तान यात्रा के दौरान पाकिस्तानी विदेश मंत्री शाह महमूद कुरैशी द्वारा केंद्रीय गृह सचिव जी. के. पिल्लै की तुलना मुबंई आतंकी हमलों के मास्टरमाइंड हाफिज सईद से करना 'हास्यास्पद' था.
राज्यसभा में प्रश्नकाल के दौरान गुरुवार को भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) नेता वेंकैया नायडू के एक सवाल के जवाब में कृष्णा ने कहा, "सईद से भारतीय गृह सचिव की तुलना करना हास्यास्पद था। एक आतंकवादी से पिल्लै की तुलना नहीं की जा सकती।"
उन्होंने कहा, "हमारे गृह सचिव ने आईएसआई (पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी) के संदर्भ में जो बयान दिया था, वह आतंकवादी डेविड कोलमैन हेडली से पूछताछ से मिली जानकारी से संबंधित था। हमारी और एफबीआई की पूछताछ में जो बाते सामने आईं है, गृह सचिव उनको संज्ञान में लेकर ही बयान दिया था।"
मुंबई हमले के तार आईएसआई से जुड़े होने के सवाल पर विदेश मंत्री ने कहा, "पाकिस्तान में कई जेहादी संगठन हैं जो भारत के खिलाफ नफरत फैला रहे हैं। वे हमेश भारत पर हमले की साजिश रचते हैं। इन संगठनों और आईएसआई को लेकर हमने अपनी चिंता से पाकिस्तान सरकार को अवगत करा दिया है।"

आईएएनएस

Wednesday, August 4, 2010

ए.क्यू. खान के नेटवर्क के प्रति अमेरिका अब भी चिंतित

पाकिस्तान के अब्दुल कदीर खान के परमाणु तस्कर तंत्र के फिर सक्रिय होने की आशंका से अमेरिका चिंतित है जबकि पाकिस्तान का दावा है कि कुख्यात वैज्ञानिक का खेल खत्म हो चुका है।
समाचार पत्र 'वाशिंगटन टाइम्स' में छपे एक लेख के बारे में पूछे जाने पर विदेश विभाग के प्रवक्ता फिलिप जे.क्राउले ने मंगलवार को संवाददाताओं से कहा, "निश्चय ही ए.क्यू.खान या उसका तंत्र हाल के दशक में परमाणु प्रसार के लिए सर्वाधिक जिम्मेदार रहा है। पाकिस्तान और अन्य देशों के साथ हम उसके तंत्र को समाप्त करने के लिए काम कर रहे हैं। पाकिस्तान सरकार के अनुसार ए.क्यू.खान का खेल खत्म हो चुका है, फिर भी हम तंत्र पर कड़ी नजर रखे हुए हैं।"
क्राउले ने कहा कि यह दुनिया में परमाणु प्रसार रोकने के अमेरिका के प्रयास का हिस्सा है। इसलिए यह चिंता का एक विषय है।
अखबार ने पिछले हफ्ते दावा किया था कि ए.क्यू.खान के तंत्र के वैज्ञानिकों और इंजीनियरों को विभिन्न सरकारें लुभाने का प्रयास कर रही हैं।
इस घटना के बाद परमाणु प्रसार तंत्र के फिर सक्रिय होने की आशंका से अमेरिकी खुफिया एजेंसियों की चिंता बढ़ गई है।


IANS

हिजबुल्ला ने इजरायल को धमकाया


लेबनान के संगठन हिजबुल्ला ने पिछले दिनों लेबनानी सेना और इजरायली सैनिकों के बीच हुई गोलीबारी के मद्देनजर इजरायल के खिलाफ प्रतिक्रिया की धमकी दी है।
समाचार एजेंसी डीपीए के अनुसार दोनों देशों की सीमा पर हुई गोलीबारी में लेबनान के दो सैनिक, एक इजरायली सैनिक और एक पत्रकार की मौत हो गई थी।
इस घटना पर हिजबुल्ला के प्रमुख सैय्यद हसन नसरल्लाह ने मंगलवार को कहा कि हमारी सेना ने अपने दुश्मन इजरायल के खिलाफ वीरता का परिचय दिया। इस बार हमने कुछ नहीं कहा लेकिन फिर ऐसा हुआ तो हम शांत नहीं बैठेंगे.

Tuesday, August 3, 2010

इजरायली मनमानी पर खामोशी क्यों?

गाजा में इजरायल के आतंक पर पूरी दुनिया में एक अजीब की खामोशी है। इस खामोशी में दहशत का भाव भी है और इसमें कूटनीतिक मजबूरियां भी हैं। परंतु इस खामोशी का मंजर इतना व्यापक होगा, इसकी कल्पना इस सदी में तो हरगिस नहीं की जा सकती। उन मुल्कों के ओठ कुछ ज्यादा ही सिले नजर आ रहे हैं जो हमेशा दहशतगर्दी के खात्मे और इंसानियत का हिमायती होने का दम भरते हैं। क्या इन मुल्कों को लाखों फिलीस्तीनियों से कोई हमदर्दी नहीं है? इससे भी बड़ा सवाल यह कि क्या इन मुल्कों ने इजरायल की आंतकी हरकतों के सामने घुटने टेक दिए हैं?
इन सवालों के अपने मर्म हैं। ये इसलिए भी लाजमी लगते हैं क्योंकि इस बार इजरायली हिंसा की जद में सिर्फ फिलीस्तीनी नहीं है बल्कि उन मुल्कों के लोग भी रहे जो इजरायल के खासमखास माने जाते हैं। उनका इस यहूदी मुल्क से न सिर्फ आर्थिक और राजयिक ताल्लुक है बल्कि सैन्य संबंध भी है। 31 मई को इजरायल ने जिस हिंसक वारदात को अंजाम दिया, उसमें फिलीस्तीनी नागरिक नहीं बल्कि दूसरे मुल्कों के लोग मारे गए। इजरायली हमले में मारे गए सभी नौ लोगों में ज्यादातर तुर्की के नागरिक थे। यह वहीं मुस्लिम बहुल देश है जो इजरायल से अच्छे संबंध होने का दावा करता रहा है। शायद अब वह ये दावा करने से पहले एक बार जरुर सोचेगा।
इजरायल की मंशा पर गौर करने से पहले उसकी 31 मई की आतंकी हरकत की चर्चा बेहद जरुरी है। दरअसल उक्त तिथि को छह जहाजों का एक अंतर्राश्टीय सहायता दल मदद सामाग्री के साथ बदहाली से तंग गाजा की ओर बढ रहा था और उसी दौरान इजरायली रक्षा बल के जवानों ने अंधधुंध गोलीबारी आरंभ कर दी। इस हमला के पीछे का मकसद सहायता सामग्री को गाजा में पहुंचने से रोकना था। इसय हमले का नतीजा यह हुआ नौ सहायताकर्मी मारे गए औ कई घायल हो गए। इस बर्बर कार्रवाई पर इजरायल ने तर्क दिया कि उसने हमास समर्थकों को निशाना बनाया था। उसने यह भी कहा कि वह किसी भी सहायता दल को गाजा में दाखिल नहीं होने देगा।
इजरायल ने अपनी इस आतंकी हरकत की जद में पहले हमास को रखा और फिर बाद अलकायदा की माला भी जपने लगा। उसने कहा कि जहाजी बेडे़ पर हमास के अलावा आतंकवादी संगठन अलकायदा के कुछ सदस्य भी सवार थे और इसीलिए उसकी ओर से गोलीबारी की गई। इजरायल के इन दावों के बीच हकीकत कुछ और रही। जहाजी बेडे़ पर हमास या अलकायदा के सदस्य नहीं बल्कि सहायताकर्मी और मानवाधिकार कार्यकर्ता थे। उनका गाजा पहुंचने का मकसद लाखों लोगों तक राहत सामग्री पहुंचाना था। वे इजरायली अतिक्रमण पर विरोध भी जताना चाहते थे। इजरायल इस हकीकत को झुठलाने की लाख कोशिश करे लेकिन सच यही है कि उसने नौ बेकसूर विदेशी नागरिकों की निर्मम हत्या कर दी।
इस यहूदी मुल्क ऐसी कारगुजारी कोई नई बात नहीं है। मध्य एशिया का यह देश इंसानी पहलुओं का इतनी निर्दयता से दमन भी करता है, इसकी मिसाल इस बार देखने को मिली है। खुद को एक खुली जम्हूरियत बताने वाले इजरायल ने प्रदर्शनकारियों पर भी जमकर अत्याचार किया। उसने सैकड़ो विदेशी नागरिकों को जबरन अपने यहां से बाहर खदेड़ दिया। उसने कुछ शवों की शिनाख्त किए बगैर ही तुर्की भेज दिए। उसकी हरकतों के आगे मानवाधिकार कार्यकर्ता बेबस और लाचार नजर आए। वैसे उसके सामने लाचार तो पुरी दुनिया नजर आ रही है।
इजरायल की इस मनमाना हरकत पर पूरी दुनिया में प्रतिक्रिया हुई लेकिन बहुत सधे अंदाज में। दबी जुमान में। संयुक्त राश्ट संघ ने कहा कि इजरायल को इस कार्रवाई से परहेज करना चाहिए था। दुनिया की इस सबसे बड़ी संस्था ने गाजा की नाकेबंदी खत्म करने की भी बात कही। लेकिन इसका भी अंदाज गुजारिश करने वाला था। इसका नतीजा यह रहा कि इजरायल ने इस अपील को तत्काल खारिज कर दिया।
सिर्फ संयुक्त राश्ट ही नहीं, इजरायल ने इस बार अपने बड़े भाई अमेरिका की अपील को भी ठेंगा दिखा दिया। वैसे अमेरिका ने भी बेहद ही सहज अंदाज में बयान दिया। लगा मानो इजरायल ने गोलीबारी नहीं कोई हल्की नादानी की हो। अतीत में हर बार इजरायल की हरकतों पर पर्दा डालने वाला अमेरिका इस बार जरुर कुछ मुखर हुआ लेकिन उसकी यह मुखरता नाकाफी रही। इजरायल ने विश्व समुदाय की हर अपील को ठुकरा दिया। ऐसा लगा कि मानो अब उससे बड़ी कोई ताकत नहीं है।
इजरायल की मनमानी यही नहीं थमी। जब इस दुखद घटना की अंतर्राश्टीय स्तर पर जांच कराने की मांग उठी तो इसे भी उसने बडी बेशर्मी से खारिज कर दिया। उसका कुतर्क देखिए कि इजरायली सरकार के एक नुमाइंदे ने कहा कि उनका मुल्क एक जम्हूरियत है जहां इस घटना की जांच की जा सकती है। इस नुमाइंदे ने सरेआम कहा कि उनका देश इस मसले पर माफी कभी नहीं मांगेगा।
फिलीस्तीन के इस अटूट हिस्से गाजा पर इजरायल ने बीते तीन सालों से आर्थिक नाकेबंदी कर रखी है। उसका कहना है कि इससे हमास को मिलने वाली मदद पर अंकुश लगेगा। परंतु उसके पास इसका कोई जवाब नहीं कि इइन सबके बीच लाखों मासूम फिलीस्तीनियों का क्या होगा। आज इस नाकेबंदी का असर यह है कि गाजा के लोग बुनियादी स्तर पर कई चुनौतियों का सामना कर रहे हैं जो इंसानियत को शर्मिंदा करने वाली है। परंतु इजरायल कुछ इस कदर बेशर्मी अख्तियार किए हुए है कि उसे लाखों इंसानी रुह की तनिक भी सुध नहीं है।
सवाल यही है कि गाजा पटटी में घुसपैठ करने वाला इजरायल क्यों तनकर खड़ा है? इजरायल का मनमाना रुख कोई नई बात नहीं है। साल 2006 में चुनाव के बाद फिलीस्तीन की जनता ने जब हमास का समर्थन किया तो इजरायल और उसके मित्र देशों को यह हजम नहीं हुआ। फिलीस्तीन प्राधिकरण पर तमाम आर्थिक पाबंदिया लगा दी गईं। इसके बाद ही हमास को सबक सिखाने के नाम पर इजरायल ने गाजा पर हमला भी बोला। बाद में उसने वैश्विक दाबव और वक्त की नजाकत को भांपते हुए उसने अपनी सेना वापस बुलाई। परंतु इस दौरान सैकडो बेकसूर लोग मौत की नींद सो गए और हजारों सड़क पर आए गए। उसके बाद से उसकी ये नाकेबंदी आज भी जारी है।
वैसे यह दुनिया का पहला ऐसा मामला होगा जहां इस सदी में कोई देश दंबगई का परिचय देते हुए किसी दूसरे की सीमा की चौतरफा घेराबंदी कर दी है। परंतु पूरी दुनिया खामोश दिखाई देती है। परमाणु कार्यक्रम के मसले पर ईरान और उत्तर कोरिया को कोसने वाले देश इस मामले पर ढुलमुल दिखाई दिए। कई समाजसेवी और मानवाधिकार संगठनों ने इस पर आवाज उठाने की कोशिश की तो उन्हें इजरायल ने बर्बर ढंग से कुचलने का प्रयास किया। उसके इस तरह के हिंसक प्रयास में कई लोग मारे गए और बहुत से लोग घायल हुए।