Sunday, October 17, 2010

हेडली को अमेरिका ने क्यों नहीं रोका?

मुम्बई पर हमले की साजिश रचने वाले पाकिस्तानी दहशतगर्द डेविड कोलमैन हेडली और अमेरिका के बीच की सांठगांठ की बात फिर सामने आई है। हेडली की दो बीवियों ने यह खुलासा किया है कि हेडली के बारे में अमेरिकी अधिकारियों को आगह किया गया था लेकिन इसकी किसी ने सुध नहीं ली।
ऐसे में इस बात को स्पष्ट तौर पर कहा जा सकता है कि हेडली अमेरिका के लिए काम करता था। हेडली की दूसरी बीवी फाइजा औतल्हा की ओर से नया खुलासा किया गया है। फाइजा मोरक्को मूल की नागरिक है। इससे पहले हेडली की एक अमेरिकी पत्नी ने भी दावा किया था कि उसका पति पाकिस्तान में सक्रिय आतंकवादी संगठन लश्कर-ए-तैयबा का सदस्य था और पाकिस्तान की एक प्रमुख खुफिया एजेंसी का उसे संरक्षण प्राप्त था। हेडली ने तीन शादियां कर रखी हैं।
दोनों पत्नियों की ओर से चेतवानी मिलने के बाद भी अमेरिकी अधिकारियों ने कोई कदम नहीं उठाया। इसका नतीजा रहा कि पाकिस्तानी मूल का आतंकवादी हेडली वर्ष 2002 से 2009 के बीच शिकागो से पाकिस्तान के बीच अपने नेटवर्क को मजबूत करता रहा और मुम्बई को दहलाने की साजिश रचता रहा।
फाइजा ने यह दावा किया है कि हेडली हर समय अलग-अलग पहचान बताता था। पाकिस्तान में रहने पर वह खुद को एक पक्का मुसलमान बताता था और सभी से बतौर दाऊद मिलता था। इसके बाद जब वह भारत जाता था तो वहां खुद को अमेरिकी नागरिक बताकर डेविड हेडली के रूप में लोगों से मिलता था।
फाइजा ने कहा, ‘‘मैंने अमेरिकी अधिकारियों को बताया था कि वह (हेडली) आतंकवादी है या फिर आप लोगों के लिए काम कर रहा है। परंतु उन्होंने अप्रत्यक्ष रूप से मुझे चले जाने के लिए कहा।’’
ऐसे में यह बड़ा सवाल है कि राष्ट्रपति ओबामा की भारत यात्रा से पहले यह नया खुलासा क्या रंग लाएगा? क्या भारत ओबामा से यह पूछेगा कि अमेरिका ने हेडली के बारे में भारत को वक्त रहते क्यों नहीं सूचित किया।? इसके साथ यह भी सवाल पूछा जाना चाहिए हेडली अमेरिकी सरकार का एजेंट था या नहीं?

Tuesday, October 5, 2010

मुशर्रफ ने उगला कड़वा सच

आखिरकार पाकिस्तान के पूर्व राष्ट्रपति परवेज मुशर्रफ ने स्वीकार कर लिया  कि उनका देश भारत के खिलाफ लड़ने के लिए आतंकवादी समूहों को प्रशिक्षित करता था। उनकी सरकार भारत के साथ कश्मीर मुद्दे पर बातचीत चाहती थी इसलिए वह सब कुछ जानते हुए भी इस ओर से आंखें मूंदे रहती थी। पाकिस्तान की सरकार ने उनके खुलासे पर ऐतराज़ जताया है.

जर्मनी की एक पत्रिका को दिए एक साक्षात्कार में मुशर्रफ ने कहा है कि वास्तव में कश्मीर में भारत से लड़ने के लिए आतंकवादी समूह तैयार किए जाते थे। उन्होंने कहा, "सरकार इस ओर से आंखें मूंदे रहती थी क्योंकि वह चाहती थी कि भारत कश्मीर पर चर्चा करे।"
मुशर्रफ ने कहा, "पश्चिम की ओर से कश्मीर मुद्दे की अनदेखी की जा रही थी, जो पाकिस्तान के लिए मुख्य मुद्दा था। हमें उम्मीद थी कि पश्चिमी देश खासतौर पर अमेरिका और जर्मनी जैसे महत्वपूर्ण देश कश्मीर मुद्दे के समाधान में मदद करेंगे। क्या जर्मनी ने ऐसा किया।"
पाकिस्तानी सेना के पूर्व प्रमुख मुशर्रफ ने ही अक्टूबर 1999 में तत्कालीन प्रधानमंत्री नवाज शरीफ सरकार का तख्तापलट दिया था। उन्होंने कहा कि पाकिस्तान में जब भी अशांति होती है तो हर कोई सेना को इसके लिए जिम्मेदार मानता है जबकि सैन्य शासन में अशांति दूर हो गई थी।
उन्होंने कहा कि पाकिस्तान की आर्थिक स्थिति कमजोर हो रही है जबकि अन्य क्षेत्रों में भी यही हाल है। कानून-व्यवस्था की धज्जियां उड़ाई जा रही हैं, आतंकवाद बढ़ गया और इस सब के बीच राजनीतिक उथल-पुथल की स्थिति है।

Wednesday, September 29, 2010

पाकिस्तान ने फिर छेड़ा कश्मीर राग

पाकिस्तान ने एक बार फिर कश्मीर को विश्व स्तर का मसला बनाने की कोशिश की है. उसकी इस कोशिश का मकसद अपने यहाँ बढ़ रही अराजकता से दुनिया का ध्यान हटाना है.
पाकिस्तान के विदेश मंत्री शाह महमूद कुरैशी ने संयुक्त राष्ट्र महासभा में मंगलवार को कश्मीर में जनमत संग्रह कि बात कही. उनहोंने मंगलवार को महासभा को संबोधित करते हुए कहा, "कश्मीरियों के आकांक्षाओं को ध्यान में रखते हुए कश्मीर मसले का हल संयुक्त राष्ट्र प्रस्तावों के मुताबिक होना चाहिए। इससे दक्षिण एशिया में शांति और स्थिरता के लिए बेहतर माहौल बनेगा।"

कुरैशी ने कहा, "जम्मू एवं कश्मीर विवाद स्वतंत्र और निष्पक्ष जनमत संग्रह के तहत कश्मीरी लोगों के आत्म निर्णय लेने के अधिकार से जुड़ा है। यह संयुक्त राष्ट्र के तहत होना चाहिए।"

अब सवाल यह है कि पकिस्तान को कश्मीर कि याद क्यूँ आ गयी ? इसका जवाब यही है अपनी बदहाली छुपाने कि या एक कोशिश भर है. भारत सरकार ने भी यही बात कही है.

Monday, September 20, 2010

विश्वसनीय नहीं रहा आईएईए : ईरान

ईरान ने अंतर्राष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी (आईएईए) कि विश्वसनीयता इज लोकी खड़े कियें हैं.

आईएईए के सदस्य देशों की वार्षिक बैठक के दौरान ईरान के परमाणु प्रमुख अली अकबर सालेही ने कहा, "ऐसा लगता है कि एजेंसी एक नैतिक, आधिकारिक और विश्वसनीयता के संकट से जूझ रहा है।"

सालेही ने आईएईए की हाल की एक रिपोर्ट के बारे में शिकायत की, जिसमें एजेंसी द्वारा की जा रही ईरान के परमाणु कार्यक्रम की जांच में उसके द्वारा सहयोग न करने के लिए आलोचना की गई थी। उन्होने ने आरोप लगाया कि आईएईए कुछ खास देशों के राजनीतिक दबाव में है। यह संकेत अमेरिका और उसके पश्चिमी सहयोगियों की ओर था।

Saturday, September 18, 2010

कुरैशी से मिल सकते हैं कृष्णा

पिछले दिनों द्विपक्षीय वार्ता कि नाकामी के बाद  विदेश मंत्री एस.एम. कृष्ण अपने पाकिस्तानी समकक्ष शाह महमूद कुरैशी से मुलाकात कर सकते हैं. दोनों  इस महीने होने वाली संयुक्त राष्ट्र की आम सभा की बैठक के लिए न्यूयार्क पहुँच रहे हैं.
कृष्णा 10 दिवसीय दौरे पर शनिवार को न्यूयार्क रवाना हो रहे हैं। वह आम सभा की कई सारी उच्चस्तरीय बैठकों में भारत का प्रतिनिधित्व करेंगे तथा कई अन्य आयोजनों में भी हिस्सा लेंगे। विदेश सचिव निरूपमा राव फिलहाल वाशिंगटन में हैं। वह अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा के नवंबर में प्रस्तावित भारत दौरे से संबंधित एजेंडे को मूर्तरूप देने में जुटी हैं।

 इस बात की संभावना है कि दोनों विदेश मंत्री संयुक्त राष्ट्र महासचिव बाण की मून द्वारा दिए जाने वाले रात्रिभोज के दौरान और बाद में 28 सितंबर को सार्क  के विदेश मंत्रियों की बैठक के दौरान मिल सकते हैं। इसके पहले दोनों विदेश मंत्रियों के बीच 15 जुलाई को हुई वार्ता विफल हो चुकी है।

Tuesday, August 31, 2010

इराक में हमारा अभियान पूरा: ओबामा

अमेरिका के राष्ट्रपति बराक ओबामा ने इस बात की घोषणा कर दी है कि इराक में अमेरिकी अभियान अब खत्म हो गया है।

ओबामा ने देश के नाम अपने संबोधन में कहा ‘‘इस अहम पड़ाव पर सभी अमेरिका के लोगों  को याद रखना चाहिए कि अगर हम आत्मविश्वास और प्रतिबद्धता से आगे बढ़ते हैं, तो हमारा भविष्य हम खुद बना सकते हैं। इससे पूरी दुनिया को यह संदेश पहुंचेगा कि अमेरिका अपने नेतृत्व को मजबूत और कायम रखना चाहता है।’’

अपने कार्यालय से सीधे प्रसारित एक संदेश में उन्होंने इस बात की घोषणा की कि इराक में अभियान अब खत्म हो चुका है। उन्होंने कहा ‘‘ऑपरेशन इराकी फ्रीडम अब खत्म हो चुका है और अब इराकी लोगों को उनके देश की सुरक्षा की जिम्मेदारी खुद निभानी है।’’

Monday, August 16, 2010

सुरक्षा परिषद में भारत का दावा मजबूत

संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की वर्ष 2010-11 की अस्थाई सदस्यता के लिए भारत की दावेदारी मजबूत मानी  जा रही है. खुद भारत को भी भरोसा है कि अक्टूबर में होने वाले चुनाव में उसे आम महासभा में उसे कम से कम 150 वोट मिलेगा.
संयुक्त राष्ट्र की आम महासभा अक्टूबर में सुरक्षा परिषद की अस्थाई सदस्यता के लिए देशों का चयन करेगी। यदि सब कुछ ठीक रहा तो भारत एक जनवरी 2011 से दो वर्ष के कार्यकाल के लिए सुरक्षा परिषद का अस्थाई सदस्य बन जाएगा।

सुरक्षा परिषद की अस्थाई सदस्यता की दौड़ से इस वर्ष जनवरी में कजाकिस्तान के हटने के बाद से भारत ने दुनिया की सभी राजधानियों में राजनयिक प्रयास तेज कर दिए। अस्थाई सदस्यता के लिए आम महासभा में आवश्यक दो-तिहाई बहुमत को हासिल करने के लिए एशियाई और अफ्रीकी देशों का समर्थन जुटाने पर मुख्य रूप से जोर दिया जा रहा है.
अंतर्राष्ट्रीय समर्थन जुटाने की योजना में शामिल एक वरिष्ठ अधिकारी ने समाचार एजेंसी आईएएनएस को बताया कि अब एशियाई देशों के समर्थन के साथ भारत ने करीब 130 देशों का समर्थन हासिल कर लिया है जो आवश्यक 128 वोटों से अधिक है.

इसके बावजूद दुनिया भर से मिल रहे समर्थन से उत्साहित भारत ने अब कम से कम 150 सदस्यों का समर्थन जुटाने का लक्ष्य रखा है। आम महासभा की बैठक में हिस्सा लेने के लिए न्यूयार्क जा रहे कृष्णा उससे इतर सुरक्षा परिषद की स्थाई सदस्यता के दावेदार देशों जापान, ब्राजील और जर्मनी के विदेश मंत्रियों के साथ बैठक करेंगे।

Tuesday, August 10, 2010

'भारत और चीन के बीच सम्बन्ध इस सदी की बड़ी घटना'

विदेश सचिव निरुपमा राव का कहना है कि भारत और चीन के बीच सम्बन्ध इस सदी की बड़ी घटना है.
समाचार चैनल सीएनएन-आईबीएन के कार्यक्रम 'डेविल्स एडवोकेट' में करन थापर को दिए साक्षात्कार में राव ने कहा कि समझदारीपूर्ण वार्ता दोनों देशों को अपने मुद्दों को सामने रखने में मददगार होगी। इससे इन मुद्दों पर जवाबदेही और समझदारी बढ़ेगी।
उन्होंने कहा कि भारत और चीन के संबंध 21वीं सदी की बड़ी घटना होंगे। ये संबंध संवाद पर आधारित होंगे। हमारा इरादा इसे बुद्धिमानी और भरोसे से चलाने का है। इससे हम अपने हितों को हमेशा के लिए सुरक्षित कर रहे हैं.
भारत और चीन के बीच वर्ष 1962 में युद्ध हो चुका है। इसके बावजूद दोनों देशों के बीच व्यापार बढ़कर इस वर्ष के अंत तक 60 अरब डॉलर होने की उम्मीद है।

Sunday, August 8, 2010

कैमरन के ‘कूटनीतिक वार’ का मतलब

हाल ही में भारत दौरे पर आए ब्रिटिश प्रधानमंत्री डेविड कैमरन उस सच्चाई को बोल गए जिससे पूरी दुनिया वाकिफ है लेकिन कोई इस तरह सरेआम कहने की हिमाकत नहीं करता। अब भारत से बेहतर इसे कौन जानता होगा जो वर्षों से प्रायोजित आतंकवाद की मार झेल रहा है।

बेंगलुरू में कैमरन ने पाकिस्तान को दो टूक शब्दो में कह दिया कि वह आतंकवाद का निर्यात बंद करे। इससे बड़ी बात कि वह अपने इस बयान पर अडिग रहे। यह पहला मौका था जब किसी राष्टाध्यक्ष ने पाकिस्तान को झन्नाटेदार तमाचा जड़ा और फिर इस पर जरा अफसोस नहीं किया। पाकिस्तान में इस तमाचे की गूंज साफ तौर पर सूनी गई।

सवाल यह है कि आखिर कैमरन ने इस सच्चाई को क्यों दहाड़ने की अंदाज में बयां किया। क्या इसे मान लिया जाए कि अब इंग्लैंड की नीति साफ हो चुकी है? इन सवालों के बीच सच यह है कि इंग्लैंड अपनी विदेश नीति में बड़ा बदलाव ला रहा है। उसे इस बात का आभास है कि एशिया और अंतर्राष्टÑीय मंच पर भी भारत के सुर में सुर मिलाना उसके लिए कारगर हो सकता है। क्योंकि भारत के साथ उसके व्यापक हित जुड़े हुए हैं।


कैमरन का बयान भारत के बढ़ते कूटनीतिक रसूख का भी प्रमाण है। भारत हमेशा से यह कहता रहा है कि वह प्रायोजित आतंकवाद का शिकार है। परंतु ज्यादातर देश उस पर कुछ बोलने से परहेज करते रहे हैं। परंतु ब्रिटेन के बदले निजाम ने अपनी स्पष्ट राय जाहिर कर दी है। सवाल यह है कि अमेरिका भी इस कड़वी सच्चाई को सरेआम बयां करेगा?

Saturday, August 7, 2010

कोलंबिया के राष्ट्रपति बने जुआन मैनुअल सैंतोस

कोलंबिया में जुआन मैनुअल सैंतोस नए राष्ट्रपति बन गए हैं. उन्होंने अल्वारो उरिबे की जगह ली है। उनके पदभार ग्रहण करने के समारोह में लगभग 5,000 मेहमानों ने शिरकत की। इसमें ब्राजील के राष्ट्रपति लूला डीसिल्वा सहित कई गणमान्य लोग भी उपस्थित थे।

सैंतोस पेशे से एक पत्रकार और अर्थशास्त्री हैं। वह कोलंबिया के सबसे अमीर परिवारों में एक के सदस्य हैं। 59 साल के सैंतोस  वाम विद्रोहियों के प्रति कड़े तेवर रखने के लिए जाने जाते हैं।

सैंतोस आर्थिक सुधार को भी महत्व देना चाहते हैं. उनके सामने सबसे बड़ी चुनौती वाम विद्रोहियों से निपटने की  है. वह कोलंबिया में कई अहम् पदों पर रह चके हैं.